Wednesday, March 11, 2015

सड़क के किनारे , झाड़ियो में , खंडहरों में अपने आप उग आये फूलों को देखा है कभी ...यहाँ देखें

मुझे कभी गमले में खिले फूलों ने मोहित नहीं किया जिनका लालन-पालन किया जाता है ...सड़क के किनारे , झाड़ियो में , खंडहरों में अपने आप उग आये फूलो ने हर बार अपनी और खींच लिया.....इनकी जिजीविषा, जिद ने आकर्षित किया ...मेरे कैमरे की नज़र से एक नज़र आप भी देंखे-






                    











 













वंचित जन
उग आते है 
जंगलों से, झाडो से, 
किसी खँडहर की गिरी दीवारों से 
बंजर जमी की फटी बिवाईयों से 
परवाह नहीं होती किसी की
सोचते नहीं कुछ भी
ये उपेक्षित
अक्खड लोग
जड़े जमा लेते है कही भी
न हो खाद, पानी
हवा, सूरज का प्रकाश
न हो लालन-पालन का स्नेह
फिर भी एक जिद होती है
अपने अस्तित्व को बचाए रखने की जिद
अपने जीवन को मुकम्मल बना लेने की जिद
ज़िंदा होने की गरिमा को बरकरार रखने की जिद
और वे उगते रहते है निरंतर
कुचले जाने के बाद भी
उखाड़ कर फेक दिए जाने के बाद भी
सर उठाते है हर बार
बार – बार
लगातार

.....swayambara 

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